जिंदगी के अंतिम दिनों मे कम से कम हो तकलीफ, एम्स बना रहा है ऐसी नीति

जिंदगी के अंतिम दिनों मे कम से कम हो तकलीफ, एम्स बना रहा है ऐसी नीति

रोहित पाल

मरीज की मौत के समय उनकी हालत पर किए गए सर्वे में भारत 67वें स्थान पर रहा। यह सर्वे 80 देशों पर किया गया था। भारत में ऐसी कोई निति नही है जिसमें मरीज को उसके अंतिम दिनों में सेवा (एंड ऑफ लाइफ केयर) दिया जा सके जिससे वह सुकून से मृत्यु को प्राप्त कर सकें। हालांकि अब एम्स ऐसी नीति बनाने की तैयारी कर रहा है जिससे 'उन मरीजों को जिनके बचने की कोई उम्मीद नही है', उनके अंतिम दिनों में कोई तकलीफ न हो।

अस्पताल ने एक कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी कैंसर व अन्य बीमारी से पीड़ित मरीजों के अंतिम दिनों मे देखरेख करेगी। इस कमेटी का मकसद होगा कि वह ऐसे मरीजों की पहचान करेगी जिनकी बचने की उम्मीद खत्म हो चुकी है और उनकी पूरी देखरेख करेगी, उन्हें दर्द से राहत ही नही बल्कि भावानात्मक रुप से भी मदद करेगी।

वहीं एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने एक समाचार पत्र को बताया कि, अंतिम दिनों में मरीज के परिवार वाले मरीज का इलाज करने से रोकते हैं कयोंकि वह मरीज को असपताल में इतनी सारी दवाईयों और ट्यूब के साथ नही देख पाते हैं। एम्स की एंड ऑफ लाइफ केयर पॉलिसी इन चीजों को ध्यान में रखकर बनाई जाएगी।

बता दें कि इस सर्वे में पहला स्थान पाने वाला देश इंग्लैंड है जहां एंड ऑफ लाइफ केयर पॉलिसी है। वहीं पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव युथनेशिया की अनुमति दी थी य़ानि सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु की अनुमति दी थी, जैसे कि कोई अगर व्यक्ति कोमा में चला जाए और उसका इलाज न हो सके तो उसे जीवनदान न दिया जाए।

 

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